हरियाणा की सियासत जाट समुदाय के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. विधानसभा चुनाव में जाटलैंड इलाके में आनी वाली सीटों पर विपक्षी चक्रव्यूह को भेदना बीजेपी के लिए आसान नहीं है. कांग्रेस का पूरा फोकस जाट वोटों पर है और पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा को आगे कर रखा है. वहीं, दूसरी तरफ बीजेपी की नजर गैर-जाट समुदाय के वोटबैंक पर है, जिसके चलते ओबीसी से आने वाले नायब सिंह सैनी को सत्ता की कमान सौंप रखी है. ऐसे में बीजेपी क्या जाट समुदाय के वोटों को साधे बिना हरियाणा की जंग फतह कर पाएगी?
हरियाणा में 30 फीसदी जाट समाज किसी भी पार्टी को चुनाव जिताने और किसी भी सरकार को गिराने की ताकत रखता है. रोहतक, सोनीपत, कैथल, पानीपत, जींद, सिरसा, झज्जर, फतेहाबाद, हिसार और भिवानी जिले की करीब 35 विधानसभा सीटों पर जाटों का अच्छा प्रभाव है. इसके चलते ही इस इलाके को जाटलैंड कहा जाता है. यहां की सीटों पर जाट समुदाय हार-जीत का फैसला करते हैं. जाटलैंड की सीटें बीजेपी के लिए टेंशन बनी हैं तो कांग्रेस को अपनी सत्ता में वापसी की उम्मीद दिख रही है.
जाट चेहरे को लेकर BJP की बढ़ी टेंशन
पिछले दस सालों से जाट समुदाय हरियाणा की सत्ता से वंचित था, गैर-जाट हाथों में सत्ता की कमान है. जेजेपी के साथ गठबंधन टूटने के बाद बीजेपी के लिए एक बड़ी बाधा है, क्योंकि पार्टी के पास जाट वोटरों को प्रभावित करने वाला कोई चेहरा नहीं है. बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ओपी धनखड़ और कैप्टन अभिमन्यु जैसे प्रमुख जाट नेता साइड लाइन है. चौधरी बीरेंद्र सिंह भी बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए. जाट वोटों की सियासी ताकत को समझते हुए बीजेपी ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जाट समुदाय से आने वाली किरण चौधरी को राज्यसभा भेजकर राजनीतिक संदेश देने का दांव चला है.
33 सालों से सत्ता पर जाटों का दबदबा
पंजाब से अलग होकर 1966 में हरियाणा का गठन हुआ और उसके बाद से राज्य में जाटों की सियासत रही है. 58 साल के इतिहास में हरियाणा में 33 सालों तक जाट समुदाय के नेताओं ने राज किया है. गैर-जाट मुख्यमंत्रियों में भगवत दयाल शर्मा, राव बीरेंद्र सिंह, भजन लाल, बनारसी दास गुप्ता, मनोहर लाल खट्टर और मौजूदा सीएम नायब सिंह सैनी है. वहीं, जाट समुदाय के मुख्यमंत्रियों में बंसीलाल, देवीलाल, ओम प्रकाश चौटाला, हुकुम सिंह और भूपेंद्र सिंह हुड्डा का नाम शामिल है. बंसीलाल तीन बार, ओपी चौटाला पांच बार और भूपेंद्र हुड्डा दो बार सीएम रहे. इस तरह से 33 सालों तक जाट समाज का सत्ता पर दबदबा रहा.
प्रभावशाली जाट परिवार
हरियाणा में दो बार मुख्यमंत्री रहे देवी लाल ने जनता दल की सरकार के दौरान उपप्रधानमंत्री के रूप में भी काम किया है. बंसी लाल इंदिरा गांधी की सरकार में रक्षा और रेल मंत्री भी रहे हैं. भूपेंद्र सिंह हुड्डा 10 साल तक मुख्यमंत्री रहे हैं. विधानसभा चुनाव में फिर से वो मुख्यमंत्री पद पर नजर गड़ाए हुए हैं. एक और प्रभावशाली जाट परिवारों में छोटू राम का परिवार भी है. उनके पोते बीरेंद्र सिंह केंद्रीय मंत्री रहे हैं और कांग्रेस में जाट चेहरा हैं. चौधरी देवीलाल की सियासी विरासत ओम प्रकाश चौटाला के दो बेटों के बीच दो हिस्सों में बंट चुकी है, जिसमें अभय चौटाला इनेलो की कमान संभाल रहे हैं तो जेजेपी की बागडोर अजय चौटाला और उनके बेटे दुष्यंत चौटाला संभाल रहे हैं. इनेलो और जेजेपी दोनों ही सियासी हाशिए पर है, जिसके चलते अभय चौटाला ने बसपा के साथ गठबंधन कर रखा है.
जाट वोटों पर कांग्रेस की पकड़
हरियाणा में जाट आबादी भले ही 30 फीसदी तो गैर-जाट 70 फीसदी है. इसके बाद भी जाट सबसे प्रभावशाली बने हुए हैं. 90 विधानसभा सीटों में से लगभग 36 पर जाटों की मजबूत उपस्थिति है और 10 लोकसभा सीटों में से 4 पर उनका काफी प्रभाव है. 2019 विधानसभा चुनाव में जाट प्रभाव वाली ज्यादातर सीटें कांग्रेस जीतने में कामयाब रही और कुछ सीटें जेजेपी के खाते में गई थी. बीजेपी के तमाम दिग्गज जाट नेता चुनाव हार गए थे. 2024 के लोकसभा चुनाव में जाट प्रभाव वाली तीन लोकसभा सीटें कांग्रेस जीती है.
कांग्रेस ने हुड्डा को किया आगे
प्रदेश के सियासी समीकरण को देखते हुए कांग्रेस ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा को आगे कर रखा है. इसके अलावा चौधरी बीरेंद्र सिंह से लेकर रणदीप सुरेजवाला जैसे जाट चेहरा भी हैं. बीजेपी ने जाट वोटों को साधने के लिए जरूर किरण चौधरी को आगे किया है, लेकिन जाट बेल्ट में पार्टी को वोट हासिल करने के लिए कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. इसके पीछे सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि बीजेपी के पास फिलहाल मजबूत और प्रभावशाली जाट चेहरा नहीं है.
चुनाव में किसके साथ जाटों का विश्वास?
बीजेपी ने पूरी तरह से गैर-जाट वोटों पर अपना फोकस कर रखा है. पिछले दो लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बीजेपी इन गैर-जाट समुदायों को लुभाकर सत्ता हासिल करती रही है. हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव में हरियाणा की 10 में से 5 सीटें बीजेपी और 5 सीटें कांग्रेस जीतने में सफल रही है. इस चुनाव में जाट और दलित समीकरण कांग्रेस के पक्ष में लामबंद रहा है और इसी फार्मूले पर विधानसभा चुनाव में उतरने का रोडमैप तैयार किया है. ऐसे में देखना है कि जाटों का विश्वास किसके साथ इस बार के चुनाव में रहता है.